Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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#काव्योत्सव -2



तू बरसों से चूप क्यूँ थी ?
तुझे अबला-निर्बल मानकर
ये वैयसी दरिंदे व्यस्त थे
हर रोज तेरे जिस्म का अंग-अंग नोचने
रुह का तार-तार छल्ली कर जाने

अब ' Me Too ' को अस्त्र बना ले
उत्पीड़न के हर जुल्म पर प्रहार कर दे
ये भेडियें चटपटाहट दर से बाहर आयेंगे
जो अक्सर शराफ़त का मुखौटा पहनकर
बेखौफ़ भींड की आड़ लेकर चल रहे थे
वो हैवान सरेबाजा़र नीलाम होगा
शर्म से पानी, पानी हो जाएगा
असलियत उसकी औक़ात दिखायेगी

लेकिन तुझे झुकना नही, कटना नही
मन से हिंमत गंवाना नही
प्रत्येक शोषण का बदला तुझे
आज हक़ से गिनगिनकर लेना है
अंतिम सांस तक लड़कर ही सही
विकट स्थिति में डटकर ही सही ,
लेकिन बिखरना नही, टूटना नही
जज्बातों में यूँ बहना नही

जिसने तेरे अहम को कुचला है
सम्मान को कलंकित किया है
मन को द्रवित किया है ,
तन को दुषित किया है
उसकी वजह से तू कभी बरसों से
एक रात भी चैंन, सुकून से सोई नही
आज वो खुलेआम लापरवाह घूम रहा है
उन्हें सारी दुनिया समक्ष नंगा कर दे

स्वंय पर यकीन रख के ठोक दे मुकद्दमा
न्याय का ढिंढोरा जोर-जोर से पीट-पीटकर
जिसने तेरी हसीन जिंदगी को बारबार
यहाँ तबाह करके उजाड़ दिया है
उन्हें हवालात के जंजीरों तक नही
बल्कि फांसी के फंदे तक ले जा..
तभी तेरे दिल को थोडी राहत मिलेगीं


---- शेखर खराडीं ईडरिया

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111163008
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