#एककोशिश
जो उम्मीद अब आस ना रही हो,
उसे ग़म क्यूँ बनने दिया जाय!
गर मुसाफिर बनना है मंज़िल का,
क्यूँ ना परवाह किए बिना, मंज़िल तय की जाय!
जो दिन ढल गया जिंदगी में,
क्यूँ आज को उसमें जिया जाय!
डर को कमी बता कर,
क्यूँ समझौते जिंदगी से किए जाय!
हार को सबक बना कर,
क्यूँ ना लक्ष्य को आंक लिया जाय!
सोच में डूब ने से बेहतर,
आज एक और कोशिश की जाय!
हार कर अक्सर टूटते हैं लोग,
क्यूँ ना आज खुद को जोड़ लिया जाय!
जो उम्मीद अब आस ना रही हो,
उसे ग़म क्यूँ बनने दिया जाय!
-- धीर (धीरेन्द्र)..,