#काव्योत्सव_प्रेम_कविता

सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।
सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।।

प्रीत प्यार से सूना यह मन
मोहे ना सुहावै यह जोबन
पीया बैरी भये हैं बिदेसवा
फिर कैसे रोए ना बिरहन।

सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।
सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।।

होली के ये मस्त रंग सुहाने
भर ना सके दिल के वीराने
तू ही बता कौन रंगेगा अबके
शीशों से सजी मोरी पहरन।

सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।
सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।।

उल्लास की यह मधुरिम बेला
पर रोए काहे यह दिल अकेला
साजन की पतिया लागै झूठी
मिटा सके ना मन की उलझन।

सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।
सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।।

तू ही बता आएंगे ना सखी
चिट्ठी से उम्मीद सी दिखी
अब के बरस ना रुलाएंगे
देकर झूठे दिलासे साजन।

सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।
सखी री मोहे ना भावै फाल्गुन।।....।सीमा भाटिया

Hindi Poem by सीमा भाटिया : 111161314
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