याद, तन्हाई और ग़म शायद
बन गए मेरे हमकदम शायद
तेरी मजबूरियां तो वाजिब थीं
मेरा ही था नसीब कम शायद
साफ कुछ भी नज़र नहीं आता
आँख रहती है मेरी नम शायद
लौट कर वो कभी नहीं आया
तोड़ दी उसने हर कसम शायद
जा रहे हो तो जान लो इतना
फिर मिलेंगे न तुमको हम शायद
गुलशन मदान