बेईमानी का फल
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अरसू , परसू दो भाई हुआ करते थे .थे तो जुडवाँ मगर ठीक एक दूसरे के विपरीत , बचपन में जब भी दोंनों साथ खेलते तो हमेशा लड़ाई पर खेल का अंत होता .कारण होता कि अरसू बेईमानी ,छल, बल से भी जीतना चाहता जबकि परसू को बेईमानी ,छल, बल स्वीकार न थे. वैसे भी बेईमानी कौन स्वीकार करता है ?
जब दोंनो भाई बड़े हुये तो पिता बहुत बीमार पड़ गये .उनके पास इतना समय भी शेष न था कि वे अपने धन का बराबर बँटवारा कर सकें परन्तु उन्होंने अरसू को बुलाया और ताकीद कर दी कि बेटा अपने छोटे भाई को आधा हिस्सा, मेरी सब चल अचल संपत्ति में से देना .
चूँकि कोई और उस समय था नहीं ,परसू खेतों में काम कर रहा था और पिता चल बसे . तेरहवीं होते ही अरसू ने सुना दिया कि पिताजी कह गये हैं कि नदी किनारे जो कमरा बना है, परसू को देना बाकी सब जायदाद तुम रख लेना .जिसने सुना उसी ने आश्चर्य प्रकट किया ,यह कैसा बँटवारा किया पिता ने,एक को कुछ नहीं ,दूजे को सब कुछ किसी ने कहा -" एक को हीरे मोती ,दूजे को एक धोती ." यह कैसा अन्याय है .
परन्तु जब परसू ने एतराज न किया तो कोई और क्या करे ?
उसने आसमान की ओर हाथ उठाकर परमात्मा का धन्यवाद किया और कहा कि पिताजी ने कहा, तो ठीक है .अपने हिस्से के कमरे पर नदी किनारे रहने लगा .
इधर अरसू ने धन दौलत खेत खलिहान सब अपने नाम करवाये और ठाठ से रहने लगा .नौकरी पर अपने भाई परसू को ही रख लिया .
परसू गाय भैंस दुहता ,उन्हें सानी पानी खिलाता, खेत जोतता बोता .अरसू दूध बेचने जाता .
एक टंकी भरी, एक खाली ले जाता घर से.नदी से पानी मिला कर दुगुना कर लेता, शहर में बाँट आता .
इस तरह उसने खूब रुपये इकठ्ठे कर लिये .एक दिन अपनी पत्नी से बोला रात को .-"री , सुन तो ,मैं तुझे कुछ उपहार देना चाहता हूँ .बोल बदले में मुझे क्या देगी ?"
पत्नी बोली -"भला मैं तो आपकी ही हूँ , क्या दे सकती हूँ अलग से ."
अरसू था लालची ,बोला री ,तू मुझे खुश कर देना बस ,बता क्या लेगी .पत्नी के दिल में बड़ा अरमान था कि एक सुँदर जड़ाऊ नथ होती तो मैं सब के बीच पहनकर बैठती .मेरी सुँदरता मैं चार चाँद लग जाते .उसने मन की मुराद बता दी.
अरसू पत्नी के लिये जड़ाऊ नथ बनवा लाया .अपने हाथों से पहना कर अपनी भी मनमाँगी मुरादें पूरी करने का आदेश दे दिया।
अगली सुबह सखिंयों संग पत्नी नदी किनारे पानी भरने गई .उसने वह सुँदर नथ भी पहन रखी थी .सखियाँ भी भरपूर ठिठोली कर रहीं थीं .पानी भरने के पहले पत्नी ने जल में अपनी सुँदर नथ को निहारा और स्नान करने,मुँह धोने लगी .जाने कब नथ बालों में फंसी ,नाक काटती हुयी गहरे पानी में चली गई,पीछे कमरे से परसू देख रहा था,बोला -"पानी का धन पानी मैं,नाक कटी बेइमानी में.