#काव्योत्सव_2
✍️कविता_ओस की बूंदें और बेटियां
ओस की बूंदें और बेटियां,
एक तरह से एक जैसी होती हैं।
जरा सी धूप, दुख से ही मुरझा जाती हैं।
लेकिन दे जाती हैं जीवन,
बाग बगीचा हो या रिश्तों की बगिया।
ओस और बेटियां होती हैं,
कुछ ही समय की मेहमान।
धूप के आते ही छुप जाती है ओस,
और,
समय के साथ बेटियां भी बन जाती हैं,
किसी की पत्नी, बहू, भाभी और मां।
जिसमें गुम हो जाती है बेटी की मासूमियत,
फिर भी दे जाती हैं ठंडक,
सीमित समय में भी, ओस की ही तरह।
ओस बरसती है खुली छत, खुले खेत में,
तो बेटियां महकती हैं,
देती हैं दुआएं, वरदान,
घर आंगन में तुलसी की तरह।

English Poem by Manu Vashistha : 111159705
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