इस कदर दिलका सुकूँ, चैन न हारे कोई
रात की रात गिना करता है तारे कोई
उम्र यूँ हमने तेरे शहर में कांटी हमदम
जैसे प्यासा मरे दरिया के किनारे कोई
हर कोई बस यही उम्मीद लिए बैठा है
ग़म के दरिया से हमें पार उतारे कोई
आम हो जाए अगर जल्वानुमाई तेरी
आँख हरगीज नहीं देखेंगी नजारे कोई
कोशिशें लाख करे फ़िक्र कहां जाती है
फिर भी समझा नहीं किस्मत के इशारे कोई
आरज़ू इतनी है महेबुब तेरे कूंचे से
जब मैं गुजरूं तो दरीचे से पुकारे कोई
महेबुब सोनालिया
#Kavyotasv -2