★मज़दूर दिवस★
एक उम्मीद पर वो ज़िंदगी काट लेता है।
अपने पसीने से दो वक्त की रोटी कमा लेता है।।
खुद का भले ही आशियां ना हो।
दूसरों के लिए वो आरामगाह बना देता है।।
जिस ज़मीन पर हम अकड़ कर चलते हैं इतना।
वो इसी को अपना बिछौना बना लेता है।।
मौसम का मिजाज़ हमसे बर्दाश्त नही होता।
बारिश धूप की परवाह ना करके वो हमें मंज़िल तक पहुंचा देता है।।
अमीर कितना भी कमाए उसकी भूख कम नही होती।
मज़दूर तो दो निवाले भी बांट लेता है।।
हाथ पैर हिला कर हम कुछ करना नही चाहते।
एक वो है जो जिस्मानी मेहनत को अपनी खुद्दारी बना लेता है।।