Hindi Quote in Poem by Dileep Kushwaha

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सूर्य और किसान
एक निश्छल भाव की तरह
शाम का समय
थककर पत्तो से बिखर कर
गिरती सूर्य की मन्द किरणे
अन्तस से निकलता
मन्द गति से
वह किसान की थकान वाली भाव
कितनी साम्यता है
दोनों की दिनचर्या में
साथ ही जगते है
सूर्य की तपन बढ़ता जाता है
किसान की सहन क्षमता बढ़ता जाता है
एक जलता है दूसरा जलाता है
अर्थात जलते दोनों है
सूर्य की किरण अब कमजोर हो रही है
किसान को भी अब थकान आ रही है
दोनों लौट रहे अब घर को
दोनों अब आराम चाहते है
एक बादलो केें गोद में छिप जाना चाहता है
दूसरा पल दो पल का आराम चाहता है
कल फिर यही प्रकिया अपनानी है
शायद यही इन दोनों की मार्मिक कहानी है।

Hindi Poem by Dileep Kushwaha : 111155460
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