"प्यार का पहाड़ा"
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प्यार का पहाड़ा सीख लें अगर हम..!
तो जिंदगी में न रहेगा कोई बेरहम!!
आतंक मिट जायेगा सुकून छा जायेगा..!
खौफ में जीने वालों को मिलेगा दम-खम !!
सरहदें न होंगी न होगा कोई वतन ...!
दुनियॉ बन जायेगी इक महकता चमन !!
इन्सान को मिलेंगी आजाद फिज़ाएँ...!
धरा को मिलेगा इन्सानियत का गगन !!
न टुकड़े होंगे धरती के न बटेगा तन-मन..!
खुशहाली के गुल महकेंगे मन करेगा नर्तन !!
संतति सँवर जायेगी संस्कृति निखार पायेगी.!
संस्कारों की खेती का फिर न मुरझायेगा बदन !!
"मुस्कान" की गुजारिश है पहाड़ा पढ़ लो प्यार का..!
मन-मुटाव भूल कर लहराओ प्यार का परचम !!
लहराओ प्यार का परचम. !!
रचयिता-प्रतिभा द्विवेदी उर्फ" मुस्कान"©
सागर मध्यप्रदेश 19 दिसंबर 2018
मेरी रचना स्वरचित व मौलिक व प्रमाणिक है सर्वाधिकार लेखिका के हैं इसके व्यवसायिक उपयोग के लिए लेखिका की लिखित अनुमति अनिवार्य है धन्यवाद ?