पास आ जाये कोई प्यार की सौग़ात लिए.....
सुबह की महकी किरन और हसीं रात लिए...
दश्त-ए-उल्फ़त में खिंचे जाते हैं अबरू के कमाँ.....
और बरस जाते हैं तारों भरी बरसात लिए...
सारी खिड़की है खुली और खुले दर मेरे....
छोड़ आऊँ सब जो तुमआ जाओ वो लम्हात लिए...
इस तरह रूठ के जाया न करो महफ़िल से....
हम भी बैठे हैं यहां दर्द के हालात लिए...
हर तरफ़ सहमी उदासी का समां छाया है.....
कोईआयेगा यहां ख़ुशियों के जज़्बात लिए..
अब तो तन्हाई वफ़ा करने से कतराती है....
पास आती है तो बस झूठी सी इक बात लिए..
न तो तन्हाई अपनी है न कोई महफ़िल है.....
जीना है हमको तो बस अपने ख़यालात लिए....®️