सात दोस्त थे। सभी एक दिन अपने गुरुजी के पास जाकर बोले- सर, अब हम सब अठारह साल के हो गए हैं, हमें वोट देकर अपनी सरकार चुनने का हक़ मिल गया है,सभी पार्टियां वोट मांगने भी आती हैं,आप हमारा मार्गदर्शन कीजिए कि हम किसे चुनें।
अनुभवी शिक्षक ने एक एक दोने में एक एक लड्डू रख कर सबको दिया और कहा - ये प्रसाद है, इसे ले जाओ, पर इसे कल सुबह खाना, सुबह तक तुम्हें संकेत मिल जाएगा कि तुम्हें किसे चुनना है!
सभी मित्र प्रसाद लेकर लौट आए।
अगली सुबह पहले मित्र ने देखा कि प्रसाद के लड्डू में चींटियां लगी हुई हैं, उसने लड्डू उन्हीं के खाने के लिए उठा कर नाली में फेंक दिया।
दूसरे दोस्त को भी चींटियां दिखीं,पर उसने तुरंत उन्हें झाड़ा और झटपट लड्डू खा लिया।
तीसरे के घर में प्रसाद को किसी ने ढक दिया था, इससे चींटियां तो नहीं लगी थीं पर ढकने वाले ने आधा लड्डू खा लिया था। लड़के ने उसे जूठा समझ कर फेंक दिया।
चौथे मित्र के यहां भी यही हुआ, पर उसने बाक़ी बचा लड्डू प्रसाद समझ कर खा लिया।
पांचवां मित्र जब सुबह उठा तो उसने देखा कि घर के सब लोग प्रसाद को थोड़ा थोड़ा लेकर खा रहे हैं, उसने भी अपना हिस्सा लेकर खा लिया।
छठे दोस्त को सुबह लड्डू गायब ही मिला। उसने सोचा- दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम,और वो प्रसाद की बात भूल गया।
सातवें दोस्त की जब सुबह आंख खुली तो उसने गुरुजी को अपने घर के बाहर खड़े पाया। वे कह रहे थे कि रात को उनके घर से लड्डू का पूरा टोकरा ही चोरी हो गया और वे चोर के पैरों के निशान का पीछा करते करते यहां तक पहुंचे हैं।
गुरुजी के द्वारा दिए गए प्रसाद ने सभी शिष्यों का मार्गदर्शन अलग अलग तरीके से किया और सभी को प्रसाद भी अलग अलग मात्रा में मिला।
संयोग से अगले ही दिन चुनाव था, सभी मित्रों ने अलग अलग पार्टियों को वोट दिया।
पार्टियां कई थीं - कम्युनिस्ट, डी एम के, टी एम सी, जे डी यू, स पा, ब स पा, भाजपा, कांग्रेस...
अब यदि आप जानना चाहते हैं कि किस लड़के ने किस पार्टी को वोट दिया तो आपको खुद अनुमान लगाना होगा, क्यों कि वोट तो गोपनीय होते हैं, हम कैसे बता सकते हैं !