Hindi Quote in Story by Pranjal Shrivastava

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#Moral stories

घर-वापसी


कॉलोनी के पार्क में राज को देखकर शर्मा जी ने पास बैठते हुए पूछा..

'और राज बेटा,कैसे हों..इस बार लंबे अरसे के बाद आए हों...

'जी अंकल,दो साल हो गए...और आप कैसे हैं..?

'मैं तो ठीक हूँ बेटा,लेकिन तुम्हारी माँ की तबियत ठीक नहीं रहती,अभी एक महीने पहले चक्कर आने से वो काफी देर तक कमरे में बेहोश पड़ी रही,बड़ी मुश्किल से दरवाजा खोलकर हम लोग उन्हें अस्पताल ले गए थे..'।

'अरे,ये सब कब हुआ, मुझे तो इस बारे में कुछ नहीं बताया उन्होंने...'-राज ने आश्चर्य से कहा।
'माँ से कितने बार अमेरिका साथ चलने का कह चुका हूँ लेकिन वो मानती ही नहीं...'

'बेटा,तुम ही क्यों नहीं भारत लौट आते,माँ को तुम्हारी ज्यादा ज़रूरत है।'

शर्मा अंकल की बातें सुनकर उसे गहरा सदमा लगा।आज उसे अपनी सारी धन-दौलत बेकार नजर आ रही थी।उसकी बुजुर्ग माँ यहाँ अकेले रहकर कितना कष्ट भुगत रही थी,
सोचकर ही उसकी आँखे भीग गई।

घर लौटा तो माँ उसकी राह देख रही थी-'कहाँ रह गया था बेटा,बड़ी देर कर दी।'

'एक सरप्राईज लाने में थोड़ी देर हो गई थी ...'

'कैसा सरप्राईज बेटा..'

'माँ,मैं हमेशा के लिए तुम्हारे पास भोपाल आ रहा हूँ।बस 2-3 महीने वहाँ का काम समेटने में लगेंगे।'

'तू सच कह रहा है बेटा...'-अप्रत्याशित खुशी से माँ की आँखे भर आई.....

राज ने माँ के आँसू पोछकर गले लगते हुए कहा..-'हाँ माँ,अब इस जन्नत को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।



प्रांजल श्रीवास्तव,
भोपाल
15/04/19

Hindi Story by Pranjal Shrivastava : 111137239
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