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घाटी में लगातार हालात बिगड़ रहे थे।जिसके कारण सीमा से लगे ज्यादातर गाँवों के स्कूलों की पढ़ाई पूरी तरह ठप हो चुकी थी।और परीक्षाओं की तिथि अनिश्चित काल के लिए टाल दी गयी थीं। कई होनहार बच्चों की फेहरिस्त में कुलसुम भी थी जो अपने भविष्य को लेकर बेहद चिंतित और उदास थी।अशरफ अली बेटी का दर्द बखूबी जानते थे। वह अपनी तरह किसी भी हालत में उसका मनोबल टूटने नहीं देना चाहते थे।
"बेटा किसी इम्तेहान को पास कर लेने से पढ़ाई मुकम्मल थोड़ी ना हो जाती...पढ़ाई का मतलब नॉलेज है,इम्तेहान नहीं!"
"लेकिन अब्बू फिर इतनी पढ़ाई करने का क्या मतलब रहा? पिछले साल भी यही हुआ था।" वह अपनी बेचैनी और रोष को छुपा ना सकी।
"अरे बिटिया हमारी तो उम्र गुजर गई इस आतंक के साये में,लेकिन तुम्हारी ज़िन्दगी बरबाद नहीं होने देंगे। हमें ये सब बातें जरा देर से समझ आयी, लेकिन तुम खूब समझ लो...पढ़ाई मतलब ये नहीं कि फलां क्लास की चंद किताबों को पढ़कर अव्बल आ गए तो कामयाब हो गए,बल्कि पढ़ना यानी अपने जेहन में पूरी दुनियां को समेट लेना है।" इसी तरह अशरफ़ अली काफी देर तक बेटी को सकारात्मक सोच के गुर सिखाते रहे।
"शायद आप सही कह रहे हैं, लेकिन अब्बू! मेरे पास तो जितनी किताबें हैं वह सब मुझे मुंहजबानी याद हैं फिर क्या पढ़ूँ...?
"तुम बस ऐसे ही लगन की पक्की बनी रहो मेरी बच्ची! इसलिए देखो तो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ?"उन्होंने अपने थैले में से दो मोटी-मोटी किताबें निकाल कर उसके हाँथो पर रख दी।
"ओह माय गॉड...
इनसाक्लोपीडिया..और ये कॉम्पटीशन की भी...अब्बू ये कहाँ से मिल गईं?ये तो बहुत मँहगी होगी?" वह खुशी से चहक उठी।किंतु उसके उल्लास में चिंता का पुट मिश्रित था।
"खरीद कर नहीं लाया। अपने एक दोस्त से महीने भर लिए लाया हूँ।"
"आप फिक्र ना करें अब्बू,मैं इन्हें चंद दिनों में ही चाट डालूँगी।"हा...हा...हा...वह खुशी से नाचती हुई बोली।
"बस ऐसे ही खुश रहो बिटिया!"अशरफ़ अली की आँखों में आँसू आ गए।
"और इसी तरह अब्बू कभी रद्दी की दुकान से, कभी कहीं और से मेरे लिए किताबों का इंतेजाम करते रहे।"
टी वी स्क्रीन पर खुद पर बनी छोटी सी फिल्म को देखकर उसने बात पूरी की।
"आप अभी नौंवी की छात्रा हैं,लेकिन आपकी नॉलेज के आगे कॉलेज के छात्र तक पानी भरेंगे। इसी बात पर कुलसुम के लिए जोरदार तालियाँ।" मंच के आतिथेय ने जोश के साथ कहा। और सारा मंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।तालियों का शोर शांत होते ही उसने कृतिज्ञता से अपने पिता की ओर देखा और कहा-
"अब्बू! मैं खुशनसीब हूँ कि आप मेरे अब्बू हैं,आपने बुरे हालातों में भी मेरे हौसले को टूटने नहीं दिया। और पढ़ाई का सही अर्थ समझाया। लव यू अब्बू...!" दोनों बाप-बेटी की आँखों से भावुकता की अविरल धारा बह निकली। आतिथेय ने इन खूबसूरत क्षणों को अपनी मनमोहक मेजबानी के साथ समापन की ओर ले जाते हुए कहा-
"और देखिए आज आप अपनी इसी नॉलेज की वजह से यहाँ से एक करोड़ रुपए जीत कर जा रही हैं।आपको बहुत - बहुत बधाई, शुभकामनाएं।"
"जी...शुक्रिया!"