हम अपने ही विचारों के बने पिंजरे में कैद रहते हैं...
जहाँ से खुद निकल पाना कभी-कभी कठिन हो जाता है...
जब स्वयं सारे प्रयास कर के थक जाओ ,
तब अकारण बोझ मत लो...
अपने को परमात्मा की मर्जी पर छोड़ दो ....
पूर्ण समर्पण कर दो अपने "मैं" का !
वो स्वयं राह बनायेगा और
इस पिंजरे से मुक्त करेगा..
"मैं " का विसर्जन होते ही
परमात्मा की अनुभूति सहजता से हो जाती है...