मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना....
बडी़ मेहनतसे मदनलालने खुंटी से बंधे अपने हाथों को छुडाया। बहुत देर से लटके होने के कारण उस के हाथ दर्द करने लगे थे। पर जरा सी भी साँस न लेते हुये वह सामने जमीन पे पडें अपने बेटी के निर्वस्त्र शरीर कि तरफ भागा।
" राधा, अरे बेटी.... क्या हुआ तुझे?" वह एकटक राधा के मुरझाये चेहरे कि तरफ देख रहा था। पर राधा कुछ ना बोली। उसके शरीर सें प्राण कब के निकल गये थे।
मदनलाल फुट फुट के रोने लगा। बहुत सपनें सजाये थे, उसने राधा के शादी के। पर शहर में अचानक उमडे़ इन दंगो ने उसकी जिंदगी तबाह कर दी।
" हिंदुओ, जाग जाओ। अपनों के खुन का बदला लो।" बाहर से आई आवाज ने मदनलाल के भीतर प्रतिशोध कि ज्वाला जगा दी। अभी घर पर आयें गुंडों में से एक कि तलवार वही छुट गयी थी। उसें उठाकर मदनलाल बाहर कें समुदाय में शामील हुआ।
वें लोग प्रतिशोध लेने शहर कें मुस्लीम नेता सलीम खान के घर जा रहें थे। वहा पहुचतेही उन्होने सलीम को मार दिया। पत्थर बने हुये मदनलाल कों इसमें कुछ गलत न लगा।
तभीं सलीम कि चींख सुनकर उसकी बेटी बाहर आई। उसें देख सारे लोग भुखे कुत्ते कि तरह लाल टपकाने लगे। अपने वासना कि आग बुझाने वो उसकें तरफ बढे। डरकर वह भागने लगी और मदनलाल सें टकराकें गिर गयी। उसकें चींखों में मदनलाल को अपने बेटी कि चीखें सुनाई दे रही थी। उसने बाप के प्यार सें उस लडकी को उठाया। दंगों ने छिनी हुई उसकी राधा उसें वापस मिल गयी थी ।
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