mein lafz bunna bhul gai hun, bhul gai nazmen seena.
mai kaise yaad karu un rafaqaton ki rato ko
jab lafzo ki tasbeeh banakar ek nazm tumpar likhti thi
rat din tum un dano ko pal pal fera karte they !!
aaj bhi tum wese hi ho ....... or mai hi hun bilkul wesi hi
par aaj hai hamare darmiyaan meelo k fasle ..........
tum fir se louta le jao mujhko mere lafzo ki us duniya mai
jaha meri nazm bhi ho or ho mere misre bhi ...........
k mera dam ghuttne sa laga, teri chuppi se meri khamoshi se
.........मैं लफ्ज़ बुनना भूल गई हूँ ,
भूल गई नज्में सीना .
मैं कैसे याद करू
उन रफ़ाक़तों की रातो को
जब लफ्जों की तस्बीह बनाकर
एक नज़्म तुमपर लिखती थी
रात दिन तुम उन दानो को
पल पल फेरा करते थे !!
आज भी तुम वेसे ही हो .......
और मैं ही हूँ बिल्कुलं वैसी ही
पर आज है हमारे दरमियान
मीलो का फासले ..........
तुम फिर से लौटा ले जाओ
मुझको मेरे लफ्जों की उस दुनिया में
जहा मेरी नज़्म भी हो
और हो मेरे मिसरे भी ...........
के मेरा दम घुट्टने सा लगा ,
तेरी चुप्पी से मेरी ख़ामोशी से ............................................................ neelima sharma 3/4/2012