इज़हार करूँ के ना .. ?
इकरार होगा के इनकार ?
क़ई बार ज़िन्दगी बस यूँही
इसी कशमकश में बह जाती है
बात चाय से 'चाह'
पर आती भी है मगर बात
'चाय तक से' 'चाय तक पर'
रह जाती है
भुला दो वो नादानीयाँ.
ताज़गी का एक लम्हा जीते हैं...!
छोड़ो शायरी 'यारा' चलो चाय पीते हैं...!!!