'खोया' पाना
आज 'खोया' पाना एक देशव्यापी समस्या बन गया है। ये 'खोया' वो खोया नहीं है जिसे आप समझ रहे हैं बल्कि ये 'खोया' तो वो 'खोया' है जिसे आप अब समझे। अब 'खोया' पाना एक समस्या क्यों बना हुआ है ये भी आपको बताते हैं। दरअसल देखा जाए तो 'खोया' पाना कोई समस्या ही नहीं है। समस्या तो है सही 'खोया' पाना। अब सही 'खोया' कहाँ मिले और उसे कैसे पाया जाए यह जानने के लिए ही देशवासी चिंता में हैं। जो दुकानदार शुद्ध 'खोया' नहीं बेच रहा है वो भी अपने परिवार के लिए शुद्ध 'खोया' पाने को परेशान है। वो स्वयं 'खोया' पाने के लिए अन्य हलवाईयों के यहाँ जा रहा है लेकिन सही 'खोया' तो तभी पा पाएगा न जब कोई बनाएगा। ऐसा नहीं है कि लोगों को सही 'खोया' बनाना नहीं आता। आता है और बनता है लेकिन जब बड़ी दुकानों पर भी सही 'खोया' नहीं पाया जाता तो लोगों को लगता है कि सही 'खोया' कहीं नहीं पाया जाता। जबकि सत्य यही है कि अच्छा 'खोया' पाया जाता है। पर वो जगह जहाँ अच्छा 'खोया' पाया जाता है उस जगह को कहाँ पाया जाता है इसे किसी के द्वारा नहीं बताया जाता है। अच्छा 'खोया' पाने को आदमी इधर से उधर भटकाया जाता है और अंत में अच्छा 'खोया' न पाने के अवसाद में एक गृहस्थ खोया-खोया सा रहने लगता है।