तौबा दिलजलों की बस्ती में
हम क्यों दिल लगा बैठे,
यहां रहते हैं सब अंगारों पर
फिर क्यों दिल जला बैठे,
खुलेआम निलाम होते है
यहां सबके चैन-ओ-सुकूं,
फिर भी क्यों ये बेकरारी
इश्क से उधार ले बैठे,
इश्क की चकाचौंध से
ऐसी जगमगाई आँखें,
निकले वो अंगारे
जिन्हें हम तारे समझ बैठे,
यहां आने वाला हर इंसा
बनता हैं एक फसाना,
फिर भी हम आस नामी
तिनके का सहारा ले बैठे,