नामकरण
समाज सेवा से जुड़ा एक संस्थान एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रहा था।
प्रबंधकों ने सब कुछ सोचकर सारी रूपरेखा बनाली कि कौन मुख्य अतिथि होगा, कौन अतिथि होंगे, कौन वक्ता होंगे, किस विषय पर बात होगी, जलपान में क्या परोसा जाएगा, वाहन व्यवस्था आदि आदि।
समारोह का बजट भी बना लिया गया और कार्यक्रम को नाम दिया गया "ज्ञान अर्जन"।
जब अंतिम स्वीकृति के लिए फाइल चेयरमैन के पास गई तो उन्होंने प्रस्ताव पर टिप्पणी की - "वित्त विभाग को भी दिखा लें"।
वित्त अधिकारी ये टिप्पणी देखकर गदगद हो गए।
उन्होंने तत्काल प्रबंधकों को अपने चैंबर में बुला कर कहा- सुन्दर कार्यक्रम है। केवल मेरा सुझाव है कि मुख्य अतिथि श्रीमान ए की जगह श्रीमान बी को बुला लें।
- क्यों सर? प्रबंधकों ने विनम्रता से कहा।
वे बोले - आप ए को लेने कार भेजेंगे, एस्कॉर्ट भेजेंगे, फोटोग्राफर को बुलाएंगे, प्रेस को बुलाएंगे, कोई हॉल किराए से लेंगे?
- जी !
तो सुनिए- श्रीमान बी अपनी कार से आयेंगे, ड्राइवर नहीं, स्वयं ड्राइव करेंगे, मोबाइल पर तसवीर लेकर मीडिया, प्रेस, फ़ेसबुक, ट्विटर पर वे खुद डालेंगे।हो सकता है वे अपना हॉल भी उपलब्ध करादें। वहां जलपान की व्यवस्था भी उन्हीं की रहेगी। बहुत से श्रोता तो उनके साथ ही आयेंगे, निर्धारित विषय पर बहुत सी जानकारी वे ही आपको नेट से दिलवा भी देंगे! वित्त अधिकारी ने खुश होकर बताया।
प्रबंधक गण एक दूसरे का मुंह देखने लगे। साहस करके एक प्रबंधक बोले- वाह सर, अद्भुत! हमारा भी केवल एक छोटा सा सुझाव है।
- हां हां बोलिए! वित्त अधिकारी बोले।
- सर, हम लोग कार्यक्रम का नाम बदल दें। आप कहें तो इसका नाम रख दें - "ज्ञान लंगर"
वित्त अधिकारी असमंजस में थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि उन्होंने संस्थान के हित में कैसे सुझाव दिए हैं?