तुम आँखों से दूर हो हुई नींद आँखों से दूर,
मेरे साथी ग़म की चोट से हुआ दिल का शीशा चूर,
मुझे शिकवा है तक़दीर से नहीं तुमसे कोई गिला,
मुझे लाकर यूँ परदेश में मेरा सब कुछ छीन लिया,
मेरी आँखों में आँसूं आ बसे हूँ रोने पर मजबूर,
मेरे ज़ख्म हुवे परदेशिया आ रिस रिस के नासूर,
मुझे रोगी करके प्यार का दिया ग़म का रोग लगा,
मेरे जलते हुवे चराग को मेरी किस्मत गई बुझा,
ना तुम बेवफा हो ना हम यही तो ज़माने के है दस्तूर,
"पागल" को धोखा दिया नसीब ने नहीं तेरा कोई कसूर।
✍?"पागल"✍?