क्या इतना ही
दायरा है मेरा।
इतने ही कदम,
चलू मै।
जितनी जमीन
आ जाये तेरी
मुठ्ठी मे।
यू ही चलू
आँचल फैलाये
बाँहे फैलाये।
बोलते क्यू नही??
हां भूल गई
तुम क्यो बोलोगे?
अच्छा लगता है
तुम्हे मुझे सीमाओ
मे बाँध कर रखना।
क्यू यही बात है ना?
सोचती हूं और
सिर्फ सोचती ही
रह जाती हूं।
कब मिलेगी मुझे??
मेरे हिस्से की जमीन।
मेरे हिस्से का आसमां।