मैं सृजना हूँ
इस क़ायनात की हुक्मरान हूँ
मौत की हद तक जा के जन्म दूँगी तुम्हे
अबोधता की ओट में गुनाह मत करना
फूल सींचते हुए हाथ नही क़ापेंगे
किसी कली को मसलते हुए रूह जरूर धिक्कारेगी
उसकी इज़्ज़त तार तार करने से पहले सोचना
मेरी ममता को ज़ार ज़ार कर रहे हो