गाँव में मिट्टी की गुल्लक का ही रिवाज है क्योंकि बच्चे इतने बड़े सपने नहीं देख सकते कि साल, दो साल तक गुल्लक बचा सकें। तनिक सा अकाल आया या बाढ़ आयी या सर्दी की ही मार पड़ गयी तो समझो गुल्लक टूटना तय है और ये गुल्लक भी किसी फरमाइश को पूरा नहीं करती बल्कि भूखे पेट को भरती है।
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