उम्मीद बाकी है अभी
कोई और जुग होता
तो हो सकता है कि
इतनी खुरदुरी,
इतनी तल्ख़ी और
इतनी तिलमिलाहट न होती
इन कविताओं में।
इधर पिछले चार साल में
इस उपमहाद्वीप में
ऐसा कुछ ज़रूर हुआ है कि
उद्वेलित भावनाओं के ज्वार ने
शब्दों के लालित्य को
जैसे लील ही लिया हो।
मेरी इन कविताओं में
समय का सच
सीधे मुखर होकर
नहीं आ पा रहा है
और पंक्तियों के बीच
छुपा हुआ है सच
मुझे उम्मीद है
उसे तुम बांच लोगे दोस्त!