रक्षक भर्ती
एक राजा था।
एक दिन उसके दरबार में कहीं से एक युवक आया और बोला- महाराज,आपके पास महल में जो भी रक्षक या पहरेदार हैं, वे सभी सीधे सादे लोग हैं, ये आपके आज्ञाकारी भी हैं, लेकिन क्षमा करें ऐसे लोग किस काम के? जब कभी भी राज्य पर कोई धूर्त, लुटेरे, डाकू आक्रमण करेंगे तब ये सीधे सादे शरीफ़ लोग भला उनका क्या बिगाड़ पाएंगे? और सीधे शरीफ़ लोग तो आक्रमण करेंगे नहीं।
राजा को युवक की बात उचित लगी। फौरन ये फ़रमान जारी हो गया कि राज्य की सेना में नियुक्त करने के लिए डाकू, लुटेरे,आतताई, गुंडे किस्म के लोगों की ज़रूरत है।
कुछ लोगों को ये राजा की कोई चाल जैसी लगी, फ़िर भी डरते, शंकित होते हुए भी राज्य के तमाम गुंडे, आवारा, कातिल, डाकू, लुटेरे, शातिर क़िस्म के बदमाश लोग आवेदन करने लगे।
एक समझदार दरबारी से न रहा गया। वह राजा से बोला - महाराज, आप ऐसे लोगों से घिर जाएंगे तो फ़िर उनसे आपकी रक्षा कौन करेगा?
राजा ने कहा - जब ये सब लोग ही हमारे दरबारी
बन जाएंगे तो फ़िर हमें किसी का क्या डर? और हम उस युवक को ही अपना सेनापति बनाए देते हैं जिसने हमें इनकी भर्ती का सुझाव दिया है, आख़िर वह हमारा शुभचिंतक ही होगा, जब उसे हमारी इतनी फ़िक्र है।
राजा ने तुरंत उस युवक को बुलवा भेजा।
सेनापति बनाए जाते ही उसने कहा- महाराज, मैं आपको आपकी रक्षा का वचन देता हूं। मैं जान पर खेलकर भी आपकी पगड़ी की रक्षा करूंगा,यदि आपको विश्वास न हो तो लाइए, सनद के लिए हम आज से अपनी पगड़ी बदल लेते हैं।
राजा ने कुछ सकपकाते हुए उसे अपनी पगड़ी दे दी और मायूस होकर बोला- देखो, पगड़ी बदलने की ये बात केवल हम दोनों के बीच ही रहे, जनता तक न पहुंचे।
नवनियुक्त सेनापति बोला- आप बिल्कुल चिंता न करें, जनता आपके सिर पर ये मेरी पगड़ी कभी नहीं देख पाएगी, मैंने आपके रहने का प्रबंध महल के तहखाने में एक ऐसी जगह पर कर दिया है जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा।