राधा - कृष्ण प्रेम - संवाद
सम्मुख बैठे कृष्णाजी,राधा निरखे रूप।
पलक नहीं झपकावती,देख कृष्ण को रूप।।
नयन से बतीयाती, बोले ना कोई बोल।
ये तो प्रेम की भाषा हैं,इस में होते न बोल।।
सम्मुख बैठे राधा जी, कृष्ण से पूछे सवाल।
कब से बाट निहारती, कहाँ थे तुम गोपाल।।
मंद-मंद मुस्काये कर, कृष्ण कहे यही बात।
हृदय में क्यू न खोजती, वहीं तो मेरो वास ।।
चंद्र-सी झलक दिखायके, मन को लेते मोह।
तू ही बता अब हे कृष्णा, क्यु न व्याकुल होये।।
कहे कृष्णजी, राधा से,हम दोनों एक ही रूप।
छँवी जो ,जोऊ मैं अपनी, दिखे तुम्हारो रुप।।