शिक्षा...का शेष भाग
लड़के ने उनकी बात सुनकर कहा - सर,मुझे याद था कि आज गुरु पूर्णिमा है, मैं आपके लिए उपहार लेकर ही आया हूं।
वे प्रसन्न होकर बोले- वाह, दिखाओ तो क्या लाए हो?
लड़के ने कंधे पर टंगे झोले से एक इलेक्ट्रिक प्रेस निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा- आपने मुझे आत्म निर्भर होने का पाठ पढ़ाया तो मैंने सोचा क्यों न आपको आत्म निर्भर बना दूं,अब आप अपने कपड़े स्वयं इस्तरी कर सकेंगे।
वे भीतर से तिलमिला गए,पर बाहर से सहज होकर बोले- ये तो मंहगी होगी, तुमने इतना नुकसान क्यों उठाया?
लड़का संजीदगी से बोला- नुकसान बिल्कुल नहीं सर, आपने मुझे गणित और हिसाब भी तो सिखाया है,ये ठीक उतने में ही आई है जितने पैसे मैं आपको फ़ीस में देने वाला था।
- ओह,तो हिसाब बराबर? पर तुमने साल भर तक मेरी सेवा की और तुम्हें कुछ न मिला। वे झेंप मिटाते हुए बोले।
लड़के ने विनम्रता से कहा- कुछ क्यों नहीं सर,साल भर तक कपड़ों की प्रेस का बिल नौ सौ पचास रुपए हुआ जो आपको देना था,पर एक दिन मुझे आपके कपड़ों को प्रेस करते समय जेब में एक हज़ार रुपए मिले, जो मैंने आपको नहीं लौटाए, हिसाब बराबर।
वे अब अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाए, बोले- हिसाब के बच्चे,पचास रुपए तो लौटा।
लड़का शांति से बोला- आपने ही तो मुझे सिखाया था कि जो कुछ ईमानदारी से चाहो वो ज़रूर मिलता है,तो मुझे मेरी बढ़ी हुई रेट से पैसे मिल गए।
- नालायक,तो उपहार का क्या हुआ,वो मुझे कहां मिला?वे क्रोध से उखड़ गए।
लड़का बोला- आपने मुझे इतना कुछ सिखाया तो मैंने भी तो आपको कुछ सिखाया, हिसाब बराबर।
- तूने मुझे क्या सिखाया? वे आपे से बाहर होते हुए बोले।
- नया साल केवल दीवाली से नहीं बल्कि शिक्षा से आता है,और क्रोध मनुष्य का दुश्मन है...कहकर लड़का अब वापस जाने की तैयारी कर रहा था।
(समाप्त)