बबूल और जामुन (लघुकथा)
घूमता घूमता वह फ़कीर उस गांव में भी चला आया। उसे हैरत हुई जब उसने देखा कि लोग न केवल उसका मान कर रहे हैं बल्कि उसे भोजन भी दे रहे हैं
वह कृतार्थ होता रहा।
तभी एक किशोर ने उससे पूछा- बाबा,लोग आपको बिना मांगे रोटी और सम्मान दे रहे हैं,क्या आप बदले में उनका कुछ अच्छा नहीं करेंगे?
- बोल बेटा,क्या कहना चाहता है ! फ़कीर ने कहा।
लड़का बोला- गांव में एक बबूल उग गया है,हम चाहते हैं कि उसकी जगह जामुन का पेड़ हो, ताकि थोड़ी छांव मिले, कांटों से पीछा छूटे, खट्टे मीठे फल लगें और हम बच्चों को चढ़ने- खेलने के लिए एक ठौर मिले।
बाबा ने कहा - ऐसा करो,बबूल को सब मिल कर काट दो, कुछ दिन बिना छांव के रहने का अभ्यास करो, एक जामुन का बीज बो दो और उसकी परवरिश करो। कुछ समय बाद तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।
लड़का सकपकाया, बोला - पर बाबा,ये सब तो हम भी कर लेते...
- तो अब तक किया क्यों नहीं ??? फ़कीर ने जाने के लिए अपनी गठरी उठाते- उठाते कहा।