मेरी एक और चिंता इस बात को लेकर है कि कुछ शब्द अकारण गढ़ कर आसमान में छितरा दिए जाते हैं।
"अश्लीलता" को भी मैं ऐसा ही एक शब्द छद्म मानता हूं। मुझे नहीं पता कि अश्लीलता किसे कहते हैं?
हम स्थूलता की बात करें तो मैं कहूंगा कि हमारे शरीर का कोई भी अंग बेवजह कुदरत द्वारा चिपकाया गया नहीं है। सबके अपने अपने काम हैं,अपने अपने तंत्र हैं। इनमें से किसी का भी ज़िक्र या व्याख्या किसी भी कोण से अश्लील या त्याज्य नहीं हो सकता। अश्लीलता के फ्रेम में हम जिन अंगों को घसीटते हैं वे सब प्यारे हैं,जिन क्रियाओं को लपेटते हैं वे मोहक हैं।सबको प्यारे हैं,नैसर्गिक हैं,और प्रकृति को प्यारे हैं।
हां, कुछ समय पहले तक इंसान के दुम हुआ करती थी,जो कुदरत ने खुद ही वापस लेली।
अब ऐसा कुछ नहीं है जिसे हटाया जाए।सोच कर देखिए, दुनिया रुक नहीं जाएगी? फ़िर अश्लील कह कर किससे बच रहे हैं हम?