Hindi Quote in Story by Prabodh Kumar Govil

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पछतावा (लघुकथा)
एक गांव के छोटे से स्कूल में सुबह के समय एक बच्चा बैठा अपने बैग में रखी कहानी की किताब पढ़ रहा था।
किताब में एक छोटी कहानी थी कि -
" एक आदमी के पास एक मुर्गी थी। वह रोज़ एक अंडा देती थी। आदमी कभी अंडा खाता तो कभी उसे बेच देता।एक दिन आदमी के मन में ये लालच भरा विचार आया कि क्यों न मैं मुर्गी को चीर कर इसके पेट से सारे अंडे एक साथ निकाल लूं। आदमी ने तेज़ चाकू लेकर मुर्गी का पेट चीर डाला। वहां से अंडे तो नहीं निकले, लेकिन एक पोटली ज़रूर निकली जिसमें ढेर सारा पछतावा भरा था।"
बच्चा ये कहानी सब को सुनाना चाहता था,पर किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि धीरे धीरे बच्चों का मन कहानी और किताबों से हटने लगा था। वे अब खेलना पसंद करने लगे थे ताकि बड़े होकर ख़ूब नाम और पैसा कमा सकें।
एक बार कुछ बच्चों ने खेल खेल में खूब नाम कमा लिया। उन्होंने सोचा,अब नाम को बेच कर पैसा भी कमाया जाए।
बच्चों ने मुर्गी वाली कहानी नहीं सुनी थी, अतः उन्हें ये पता नहीं था कि अंडे खाने से ताक़त तो आती है पर सारे अंडे एकसाथ निकाल लेने से मुर्गी मर जाती है।
बच्चों को ये किसी ने नहीं बताया था कि रोज़ खेलने से सेहत बनती है पर खेल को बेच देने से खेल मर जाता है।
बच्चे खेल को खेलने की जगह खेल बेचने लगे।खेल भी मुर्गी की तरह मर गया।
इस बार बच्चों को खेल के पेट से दो पोटलियां मिलीं। एक में इस बात का पछतावा था कि खेल को बेचा क्यों,और दूसरी पोटली में इस बात का पछतावा था कि बचपन में कहानियां क्यों नहीं पढ़ीं?

Hindi Story by Prabodh Kumar Govil : 111062746
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