बंदर क्यों इंसान बनें?
ये अभी ताज़ा ताज़ा घटी बात है।
दिनभर से बादल थे,शाम को ज़ोर से बारिश आने लगी।शाम की बारिश कोई ज़्यादा खुशनुमा नहीं होती। क्योंकि यदि आप को शाम को भी घर के भीतर ही रहना पड़े तो दिन के गुजरने का अहसास मंद पड़ जाता है।
मैं कमरे में खिड़की के पास बैठा बारिश को देख रहा था।तभी मुझे बालकनी के पास एक बंदर बैठा दिखाई दिया। बंदर कुछ भीगा हुआ था और बारिश को टकटकी लगाए देख रहा था।
मैं सोचने लगा, बंदर हमारे पूर्वज हैं। हम पहले बंदर थे,फिर रफ्ता रफ्ता इंसान बन गए।
अगर कभी ये बंदर भी इंसान बन जाए तो क्या हो?
ये भी इसी तरह अपने दोस्तों के बीच मेरा ज़िक्र करे जैसे मैं इसका कर रहा हूं तो कितना मज़ा आए!
बंदर ये ज़रूर लिखेगा कि मैं बंद कमरे में भी आराम से बैठा हुआ,बारिश से खीज रहा था,और बंदर से डर रहा था। जबकि खुद बंदर खुले में भी अपने को सुरक्षित समझ कर बारिश का आनंद ले रहा था।
वह शायद लिखेगा कि उसके पास कोई मेडिकल बीमा नहीं था, मेरे पास था, मुझे भीग कर बीमार होने पर भी इलाज का खर्च सरकार देती, फ़िर भी वह आराम से भीग लिया,जबकि मैंने बौछार से बचने के लिए तुरंत खिड़की बंद कर दी।
मैं सोचने लगा, बंदर क्यों इंसान बनें, हम ही क्यों न बंदर बन जाएं?