Hindi Quote in Story by Prabodh Kumar Govil

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विश्वास (लघुकथा)
घर की छत पर एक छोटा सा कमरा बना हुआ था। वे उस कमरे की भी छत पर चढ़ कर टहल रहे थे। वहां चढ़ने की सीढ़ी तो नहीं बनी थी मगर जब कभी मन में अकारण बेचैनी महसूस होती तो वे लकड़ी की, छत पर पड़ी सीढ़ी से ही वहां चढ़ जाते थे।वहां आकर दो लाभ होते,एक तो उन्हें कोई देख नहीं पाता,दूसरे अपने मन से बात कर पाने की खुली छूट मिल जाती।
सहसा उन्होंने देखा कि घर की दीवार के समीप से एक रोशनी का छोटा सा घेरा तेज़ी से गुजरते हुए आकाश की ओर चला गया। इसी के साथ हल्की सी ऐसी आवाज़ भी हुई जैसे किसी बच्चे ने कोई पटाखा चला दिया हो।उन्होंने नीचे की ओर झांक कर देखने की कोशिश भी की,मगर ऐसा कुछ न दिखा।
तभी नीचे से उनके छोटे भाई की आवाज़ गूंजी, भैया, जल्दी से आओ, मां गुज़र गईं।
उनकी मां कई दिन से बीमार थीं और नीचे कमरे में खाट पर लेटी थीं।
वे सीढ़ियां उतर रहे थे और सोच रहे थे कि क्या सचमुच किसी बच्चे ने पटाखा चलाया और उसकी आवाज़ से मां के प्राण निकल गए? साथ ही भाई ने टॉर्च डाल कर देखा हो कि भैया कहां हैं!
पर क्या ऐसा भी हो सकता है कि न किसी ने पटाखा चलाया हो और न ही किसी ने टॉर्च डाली हो?

Hindi Story by Prabodh Kumar Govil : 111062629
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