येह डूबता हुवा दिन काफी कुछ सीखा के जाता हे।येह सिखाता हे की दिनकी शरुआत केसी भी हो उसकी शाम होनी ही हे।
कुछ भी हमेशा केलिए नहीं होता, फिर वो आप का जिस्म हो या आपकी सोहरत हो या फिर सांसो की डोर।
हर सुबह की शाम होनी ही हे,और उस शाम के साथ शुरु होती हे उन कम्बखत यादो की बारात जिन्हे हम नाहीं याद करना चाहते और नाहीं छोड़ना या भूलना।
याद आते हे वो कुछ अज़ीज़ से पल, वो कुछ लम्हे और कुछ कहानिया जिसके बलबूते पर सारी उम्र युही गुजर जाऐ इसा लगता हे। वो यादे हमें ना तो चेनसे सोने देती हे,नाही रेहने देती हे पर वो सिर्फ यादे ही हे, हकीकत नहीं।
क्या वो बीते हुवे कल किलिये आज को बर्बाद कर देना अच्छी बात हे? बीते हुवे कल को भूलकर आगे बढ़ जाना चाहिए ? ये डूबता हुवा दिन हमें यही सिखाता हे की
"हर सुबह की एक शाम हे ,फिर तू बीते हुवे पल केलिए क्यू गुमनाम हे,
बढ़जा आगे तोड़कर वो चुपी ,बस तेरी सच्ची महोब्त को सलाम हे।"
और आएगी फिर वो नयी सुबह ,लेकर एक रौशनी की किरण साथ,
चल उठ ,खड़े हो जा, आने वाले कल केलिऐ तुजे नहीं छोडना प्रयास।