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एक था #बचपन ?????
#शामें तो बचपन में हुआ करती थी!!!!!!
एक #अरसा हुआ,अब वो शाम नहीं होती।
जिसका #इंतजार रहता था,खेलने के लिए,
फिर थोड़ा और बड़े हुए!!!!!!
शाम का #इंतजार होता था,
#दोस्तों को अपने सपने सुनाने के लिए!!!!!!
कितना #याद आता है ना, एसा क्या हो जो हमें #खिलखिला कर हंसने पर #मजबूर कर दे,
गुदगुदा दे। कितने याद आते हैं,
वो सब जो कहीं पीछे छूट गया है।
आओ एक गहरी लंबी सांस लें,
और पहुंच जाएं बचपन की उन #गलियों में,
उस उल्लास में, #बेखौफ फिर से जीवन जीने का अंदाज़ सीखना।
हर बार #नया खेल, नई #ऊर्जा , नई #सीख , नये सपने। बचपन की ही तरह #बातें पकड़ना नहीं,
बस #माफ करना। एक अंगूठे से #कट्टा , लड़ाई,
और दो अंगुलियों से मुंह पर विक्ट्री का निशान,
एक #पुच्चा से वापिस दोस्ती।
वो छोटी, छोटी चीजों में #अपार पूंजी,
अमीरी का #अहसास ।
अपने बैग में छुपा कर रखना उस पूंजी को,
रंगीन कंचे,चित्रों की कटिंग,
बजरी में से ढूंढ़ के लाए पत्थर के टुकड़े,
सीप,शंख, घोंघे के खोल,
खट्टी मीठी गोलियां, छुप कर कैरी का खाना,
और ना जाने क्या क्या।
कभी कभी जेबखर्च के बचे पैसे भी होते थे।
वाकई #बहुत #अमीर था #बचपन ।
न जाने कहां गुम गई वो अमीरी ???
#चलो एक बार फिर से #कोशिश तो कर ही सकते हैं,
उस बचपन में लौटने की।
आज अपने किसी #पुराने दोस्त से मिलते हैं,
#बिना किसी #शिकवे शिकायत के,
#मन के #दरवाजे #खोलने हैं,
सारे मुखौटे घर पर छोड़ कर।
#बारिश में भीगकर आते हैं,
डांट पड़ेगी तो, #कोईबात नहीं।
किसी तितली को पकड़ने के लिए दौड़ लगाते हैं।
किसी छोटे पपी को घर लाकर नहलाते हैं,
फिर उसी के साथ सो जाते हैं।
चलो आज बचपन की यादों की गलियों में,
#चक्कर लगा कर आते हैं।
और #इंतजार करते हैं,
उसी #शाम का जो अब नहीं आती!!!!!!!
अब तो बस सुबह के बाद सीधे रात हो जाती है।