Hindi Quote in Story by Prabodh Kumar Govil

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"इमेज बिल्डिंग" (लघुकथा)
हमेशा की तरह एक राजा था। एक रानी भी थी।
रानी ने राजा से कहा- मुझे सजने संवरने का सामान मंगवा दो।
सामान अा गया।
रानी ने देखा तो बोली- इसमें आइना तो है ही नहीं?
राजा ने मुस्करा कर कहा- ज़रा खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर तो देखो।
रानी ने बाहर झांका तो दंग रह गई। बाहर खिड़की के चारों ओर शीशे ही शीशे लगे थे।हर शीशे में रानी का चेहरा जगमगा रहा था। रानी खुशी से लाल हो गई।
अब रानी ने श्रृंगारदान खोला और लगी संवरने।
पर ये क्या? चेहरे का पाउडर तो बिल्कुल खड़िया मिट्टी जैसा था। रानी ने तुरंत बिंदी निकाल कर देखी। बिंदी क्या थी, जैसे किसी ने लाल रंग की टिकिया रख दी हो। काजल देख कर तो रानी आग - बबूला हो गई। कोयले को जैसे ज़रा से तेल में घिस कर रख दिया गया था। रानी ने झटपट होठों की लाली तलाशनी चाही। बस, थोड़ी सी क्रीम में ईंट का चूरा ही समझो। और क्रीम भी कौन सी शुद्ध? जैसे आटे में घी !
रानी ने आनन फानन में राजा को बुलवा भेजा। उसके आते ही शिकायतों का पिटारा खोल दिया।
राजा ने धैर्य से सारी बात सुनी, फ़िर रानी से बोला- क्यों नाराज़ होती हो? महल में कोई आम आदमी तो आने से रहा। प्रजा बाहर के शीशों से ही तुम्हें सजता संवरता देखेगी। लोगों को क्या पता, तुम क्या लगा रही हो? लोग तो यही समझेंगे कि रानी साहिबा सोलह श्रृंगार में तल्लीन हैं।
रानी ने आंखें तरेर कर कहा- अच्छा, तो तुम्हें मेरी चिंता नहीं है। तुम केवल महल की 'इमेज बिल्डिंग' में लगे हो !

Hindi Story by Prabodh Kumar Govil : 111057713
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