साहस (लघुकथा)
एक मछली तेज़ी से तैरती हुई सागर के किनारे किनारे जा रही थी। वह बिजली की सी गति से हांफती दौड़ती भागी जा रही थी।सुबह से शाम तक चल कर उसने पूरा तट पार किया, तब जाकर चैन की सांस ली।
रुकते ही उसे चारों ओर से अन्य मछलियों ने घेर लिया और पूछा कि वह क्यों इस तरह सागर को चीरती दौड़ रही थी?
मछली बोली - मैं सागर को इसकी सीमा याद दिला रही थी, ताकि ये अपना आपा न खोए और अपनी सीमा में ही रहे।
एक छोटी सी मछली बोली - हाय,ऐसे तो ये बेचारा जेल के कैदी की तरह सड़ जाएगा,इसे कहीं से तो थोड़ा बाहर निकलने की छूट दे।
- बिल्कुल नहीं,मछली सख्ती से बोली। छूट मिली तो ये तट को तोड़ कर नगर को बहा देगा।
छोटी मछली सहम कर चुप हो गई।
सभी मछलियां उस मछली के साहस पर हैरान रह गईं।