इंसान के पूर्वज (लघुकथा)
एक तालाब के किनारे आम के घने पेड़ पर रहने वाले बंदर की दोस्ती तालाब में रहने वाले मगर से हो गई। मगर रोज़ दोपहर में धूप खाने किनारे की बालू में आकर लेटता था। उसी समय बंदर उछल कूद से थक कर पेड़ पर विश्राम कर रहा होता था। बस, दोनों में परिचय हुआ और दोस्ती हो गई। अब वे रोज़ मिलते। बंदर पेड़ से मीठे रसीले आम मगर के लिए नीचे गिराता, बदले में मगर भी तालाब की तलहटी से नई नई चीजें बंदर के लिए लाता। उसे भीतर की हलचल और मछलियों के किस्से सुनाता । बंदर भी जंगल का अख़बार बन कर मगर की जानकारी में रोज़ बढ़ोतरी करता।
दिन कट रहे थे। एक दिन बैठे बैठे बंदर ने सोचा- इस मगर की खाल कितनी मोटी और चिकनी है, यदि मैं इसे किसी तरह मार कर इसकी खाल पा लूं, तो इससे सर्दियों के लिए एक शानदार कोट बन सकता है।
अब बंदर इस तक में रहने लगा कि उसे इसका मौका मिले।
आख़िर एक दिन लंबी और उबाऊ दोपहर में बंदर मगर से बोला - तुम सारा दिन पानी में रहते हो, बदन पर इतनी काई और सीलन रहती है, धूप खाने भी आते हो तो ज़मीन पर रेंगते रहते हो, इससे तुम्हें ऊपर की स्वच्छ और ताज़ा हवा तो कभी मिल ही नहीं पाती होगी।
मगर बोला, बात तो सही है पर मैं कर ही क्या सकता हूं?
बंदर ने कहा - करना क्या है? मैं जो हूं तुम्हारा दोस्त।मेरी पत्नी बंदरिया और मैं, मिलकर तुम्हें ऊपर खींच लेंगे, अगर तुम कोशिश करो तो आराम से पेड़ पर चढ़ सकोगे।
मगर को ये सुझाव बेहद पसंद आया।वह अगले दिन अपनी पत्नी को भी हवा खाने साथ लाने की बात कह कर चला गया।
बात बनती देख कर बंदर का मन बल्लियों उछलने लगा। उसने प्लान बना लिया कि आम का पेड़ चिकना होने का बहाना करके वह मगर को बबूल के पेड़ पर बुला लेगा। वहां कांटों से उसका बदन छलनी हो जाएगा और मगर ढेर हो जाएगा।
उधर मगर ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई तो वह बोली - तुम्हारी तो मति मारी गई है जी,भूल गए, पंचतंत्र के युग में उसने तुम्हें कैसा उल्लू बनाया था? तुम फ़िर उसकी बातों में अा गए? तुम्हें कुछ पता भी है, बंदर इंसान के पूर्वज हैं, तुम्हारा क्या हाल करेंगे, खबरदार, जो फ़िर कभी उससे बात भी की तो ।
घबरा कर मगर ने पानी से बाहर निकलना ही छोड़ दिया। निकलता भी,तो धूप में आंखें बंद किए पड़ी रहता था ताकि कहीं भूल से भी बंदर उसे दिख न जाए।