ईश्वर कुछ न कर सका! (लघुकथा)
बात तब की है जब ईश्वर स्वर्ग में बैठा दुनिया बना रहा था। दुनिया बन जाने के बाद जब उसे रंगने की बात आई, ईश्वर ने अचानक कुछ कोलाहल सुना।
आवाज़ रंगों के डिब्बे से आ रही थी। सब रंग दुनिया में जाने को उतावले थे। मुस्करा कर ईश्वर ने डिब्बा खोला और तूलिका उठाई।
सबसे शांत दिखने वाले नीले रंग को सारा आकाश मिला।
पीला रंग मिट्टी के हिस्से में आया।
आंखों को लुभाने वाले हरे रंग ने पेड़ पौधों का राज पाया।
जब इंसान रंगने की बारी आई, अच्छी खासी जद्दो जहद हुई। ईश्वर को गेहुंआ, सांवला, भूरा, गंदुमी, गोरा, काला, बादामी, गुलाबी... सभी रंगों की बात सुननी पड़ी। फ़िर भी "रंग भेद" से सब आपस में लड़ें नहीं, यह सोच कर सबमें लाल ख़ून भरा गया।
सब रंग आपस में मिल कर रहें, ये संदेश देने के लिए आकाश में इंद्रधनुष टांगा गया। इंसान की ख़ुशी के लिए फूलों को तरह तरह के रंग दिए गए।
अच्छा, अब ये बताओ कि इंसान के दुःख में उसका साथ तुम में से कौन देगा? ईश्वर ने पूछा।
सब रंग चुप। कोई आगे न आया। सबको जैसे सांप सूंघ गया।
मजबूर होकर ईश्वर को "आंसू" बिना रंग के ही बनाने पड़े। रंगहीन।