"बिल्लियों से पराजित बंदर" (लघुकथा)
एक नगर के बाहरी इलाके में हरियाली से भरी एक सुनसान सड़क पर एक युवक तेज़ी से कार चलाता हुआ जा रहा था।
संयोग से उसी सड़क पर सामने से एक युवती भी तेज़ी से कार चलाती हुई आ रही थी। सड़क संकरी थी। बिना गाड़ी को नीचे उतारे दो गाड़ियों का निकलना संभव न था। दोनों ने ब्रेक लगा लिए, कुछ पल ठहरे फ़िर एक दूसरे को हॉर्न देने लगे।
दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं था।
लड़का कह रहा था कि उसकी गाड़ी के टायर कमज़ोर हैं, नीचे उतारने से कट जायेंगे।
लड़की कह रही थी कि यदि सामने कोई ट्रक या जानवर होता, तब भी तो वह गाड़ी को नीचे उतारता?
बहस को कौतुक से देख रहा एक चरवाहा उधर आ निकला। वह पास आकर लड़के से बोला- सर, मैं सड़क के किनारे मिट्टी डाल देता हूं, आपके टायर कटेंगे नहीं! लड़का न माना।
लड़के के मना करने पर वह लड़की से मुखातिब हुआ, बोला - गाड़ी आप निकाल लो, गाड़ी फंसेगी नहीं, मैं धक्का लगा दूंगा। लड़की ने हिकारत से मुंह फेर लिया।
चरवाहे ने एक ज़ोरदार हांक अपनी भैंसों को लगाई और भैंसें किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह लाइन बना कर सड़क पार करने लगीं।
जाते - जाते चरवाहे ने देखा, एक कुत्ता गाड़ी के टायर के पास आकर टांग ऊंची कर खड़ा हो गया।