एक समय था जब साहित्यकारों का फिल्मी दुनिया में लिखने के लिए प्रयास करना दोयम दर्जे का समझा जाता था। यद्यपि सच ये भी है कि अधिकांश साहित्यकार इसके लिए चुपके - चुपके कोशिश करते रहते थे।
प्रेमचंद की कहानियों "गोदान", "गबन" या रेणु की कहानी पर "तीसरी कसम" आदि फिल्मों के बनने के बाद साहित्यकार खुले आम फ़िल्मों में जाने के प्रयास करते पाए गए। वैसे दाग़, प्यासा सावन, खिलौना, पाले खां, पालकी जैसी फ़िल्मों के बावजूद लोगों ने गुलशन नंदा को साहित्यकार का सम्मान कभी नहीं दिया।
किन्तु प्रतिष्ठित कहानीकार कमलेश्वर ने बेहद सफ़ल आंधी, मौसम, बर्निंग ट्रेन आदि सहित कई बेहतरीन फिल्में लिखीं। राही मासूम रज़ा भी फ़िल्म लेखन का एक बड़ा नाम सिद्ध हुए। अमृत लाल नागर की बेटी डॉ अचला नागर भी कई सफल फिल्में लिख चुकी हैं।
अब साहित्यकार अपनी कहानी फ़िल्म के लिए चुने जाने पर गर्व महसूस करते हैं।
हाल ही में चरण सिंह पथिक की कहानी पर आधारित फ़िल्म पटाखा भी काफ़ी सफल रही है।