सुनो ....
मैने इश्क का एहसास दिल में छूपाए रखा है
और हर एहसास में बस तुम्हें समाए रखा है।
तुम चलें आना दबे पांव फिर मेरी यादों में
खनकती हुई पायल की तरह....
सुनों...
मैं अक्सर सोचती हूं कि तुमसें बातें हजार करूंगी
कुछ तुम्हारी न सुनकर बस अपनी ही कहूंगी
देखो तुम फिर इंतजार करना मेरे आने का
फिर मैं कुछ तुमसे कहूंगी..।
सुनों....
रूठने का हक सिर्फ मेरा है
इस हक ना ऐसे जानें दूंगी
तुम आना फिर पलाश के फूल लेकर
मैं वहीं इंतजार करूंगी...
सुनो...
जब खामोश हो झील सर्दियों में
एक पत्थर तुम डाल देना और
मेरी यादों को उसके संग बांट लेना
मैं यहाँ हँस लूंगी...
सुनों...
आज फिर बादल बरसे हैं
मैं तुम्हें याद कर फिर से भीग लूंगी
तेरे कोट की बाजूओं पर
सर अपना रख लूंगी...
सुनो...
जब आती हैं सरहद से कुछ खबरें
मन में बेचैनी होती लेकिन
तेरी राह तकती हूँ
मैं न डरती हूँ...
सुनों...
सुना है फिर दिवाली आई है
खुशियाँ साथ लाई है।
बैठी हूँ उम्मीद की लौ जलाएं
बस तेरा आना बाकी है...
सुनो...
दिव्या राकेश शर्मा।