Hindi Quote in Motivational by Rohit Gupta

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*किराये की साइकिल* . .
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पहले (1980-90) हम लोग गर्मियों में किराए की छोटी साईकिल लेते थे, अधिकांस लाल रंग की होती थी जिसमें पीछे कैरियर नहीं होता। जिससे आप किसी को डबल न बैठाकर घूमे। किराया शायद 25-50 पैसे प्रति घंटा होता था किराया पहले लगता था ओर दुकानदार नाम पता नोट कर लेता थाा

किराये के नियम कड़े होते थे .. जैसे की पंचर होने पर सुधारने के पैसे, टूट फूट होने पर आप की जिम्मेदारी, खैर ! हम खटारा छोटी सी किराए की साईकिल पर सवार उन गलियों के युवराज होते थे, पूरी ताकत से पैड़ल मारते, कभी हाथ छोड़कर चलाते और बैलेंस करते, तो कभी गिरकर उठते और फिर चल देते।

अपनी गली में आकर सारे दोस्त, बारी बारी से, साईकिल चलाने मांगते किराये की टाइम की लिमिट न निकल जाए, इसलिए तीन-चार बार साइकिल लेकर दूकान के सामने से निकलते।

तब किराए पर साइकिल लेना ही अपनी रईसी होती। खुद की अपनी छोटी साइकिल रखने वाले तब रईसी झाड़ते।

वैसे हमारे घरों में बड़ी काली साइकिलें ही होती थी। जिसे स्टैंड से उतारने और लगाने में पसीने छूट जाते। जिसे हाथ में लेकर दौड़ते, तो एक पैड़ल पर पैर जमाकर बैलेंस करते।

ऐसा करके फिर कैंची चलाना सीखें। बाद में डंडे को पार करने का कीर्तिमान बनाया, इसके बाद सीट तक पहुंचने का सफर एक नई ऊंचाई था। फिर सिंगल, डबल, हाथ छोड़कर, कैरियर पर बैठकर साइकिल के खेल किए।

*ख़ैर जिंदगी की साइकिल अभी भी चल रही है। बस वो दौर वो आनंद नही है*

क्योंकि कोई माने न माने पर जवानी से कहीं अच्छा वो खूबसूरत बचपन ही हुआ करता था .. जिसमें दुश्मनी की जगह सिर्फ एक कट्टी हुआ करती थी और सिर्फ दो उंगलिया जुडने से दोस्ती फिर शुरू हो जाया करती थी। अंततः बचपन एक बार निकल जाने पर सिर्फ यादें ही शेष रह जाती है और रह रह कर याद आकर सताती है।

*पर आज के बच्चो का बचपन एक मोबाईल चुराकर ले गया है*

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Hindi Motivational by Rohit Gupta : 111042619
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