एक वक्त था, जब मैं किसी अजनबी के लिए लिखता था। इस बात से बेखबर कि कोई अजनबी हमेशा मुझे पढ़ती है। एक अजनबी हमेशा मुझे पढ़ती थी। इस बात से बेखबर कि मैं उसी अजनबी के लिए लिखता हूँ। फिर वक्त बदल गया और हम अजनबी एक-दूसरे को जान गए, लेकिन पहचान नहीं पाए। पहले वो मुझे पहचान नहीं पाई। फिर मैं उसे पहचान नहीं पाया। एक-दूसरे को पहचानने की इस कशमकश में हम दोनों अजनबी ये भूल गए कि हम एक-दूसरे को कितना जानते हैं ? इसलिए हम फिर से अजनबी बन गए। अब वो अजनबी मुझे बिल्कुल नहीं जानती और मैं उस अजनबी को बिल्कुल नहीं जानता। फिर भी अक्सर सोचता हूँ कि जिस तरह मैं उस अजनबी को याद करता हूँ, क्या वो अजनबी भी मुझे उसी तरह याद करती होगी ? क्या वो अजनबी भी मुझे ढूंढती होगी, मैं ढूंढ रहा हूँ, जिस तरह अजनबी लोगों की इस दुनिया में हर अजनबी चेहरे से उसका चेहरा मिलाकर देखता हूँ, कहीं ये अजनबी वहीं तो नहीं, जिस अजनबी की मुझे तलाश है ?
.............................#Varman_Garhwal
03-10-2018, #वर्मन_गढ़वाल
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