अतरंगी नजरिया !
बातें मुलाकातें पेहले भी बहोत बार हुई थी ,
दुनिया की नजरों में लोगों की बातों में कहीं तुम अच्छे मिले कहीं बुरे...
मगर हमने तुम्हें इन सबसे परे कुछ अलग ही पाया !
चंद लम्हों की मुलाकात , चार पलों की बातें , इतना आसान तो नहीं था तुम्हें समझना...
मगर इतना जरूर समझ पाये ' जिसका भी हाथ थांमोगे उस से अच्छी तकदीर किसी ओर की नहीं '
वो लबों की खामोशी और नजरों की बातें ,
तन्हाइयों से दूर और खुद में ही डूबना...
तुम्हारे अल्फाज भी बहुत अजीब से हैं , पूरे होकर भी अधूरे से लगते हैं...
मानों दिमाग की हर पल उसपर पेहरेदारी है !
जिंदगी के सफर में तुम इंसान हि अलग किस्म के निकले ,
जब भी तुम्हें अच्छा समझने लगे , तुम बुरे बन गये और बुरा समझने लगे तो अच्छे बन गये...
जितना भी तुम्हें बातों में नापना चाहा , गेहराई ही बढ़ने लगी
छोड़ दिया तो किनारे नजर आने लगे...
तुम्हारा नशा भी अलग ही था ; जब करना चाहा तो सब उतर गया ,
छोड़ना चाहा तो दिमाग भी नहीं बच पाया !
तुम्हारा रुतबा भी कुछ अलग ही था
मगर मेरी जिंदगी के किस्सों में वो मगरुर था...
अब छोड़ दी तुम्हें समझने की ज़िद...
क्योंकि, तुम्हें जानकर दिल बुरा मान ने लगा !!!
- Robin rajput