(हाल-ए- इज़हार )
चल रही हूँ बेखबर,
खामोशियों का दौर हैं
हम बेसब्र वो बेखबर,
क्या आलम-ए- ये मोड़ हैं
हम पूछते हैं कई सवाल,
वो मुस्कुराते है जब जोर से
शाम ढल जाती है उनके,
इस आंदाज-ए-शोर से
क्या वाकीफ नहीं हमारे,
हालत-ए-मंजर से वो
जो कहकर यूं चल दिए,
फिर मिलेंग किसी रोज में
साफ दिखता हैं उनकी आँखो में,
हमारे लिए वो प्यार
कब तक छुपाऐगें हमसे हाले इजहार
एक रोज तो उनको भी होगा हमपर ये एतबार
छोड़कर ना जाएंगे, उनका कभी ये हाथ
© Priya kashyap (PRINCESS)