अल्मोड़ा:
मेरा जान पहिचाना पटाल वाला शहर
आसमान से ढका,
नक्षत्रों के नीचे
सबकी प्रतीक्षा में बूढ़ा हो गया है।
कहने लगा है
दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियां
सुख-दुख भरा इतिहास,
करने लगा है अनुसंधान
खण्डहरों की माटी में घुसकर।
राजा आये-गये
शासक बने-बिगड़े
पताकायें उठी -ठहरी,
अब तक लोगों के काँधे पर
खड़ा है
मेरा जान पहिचाना शहर।
सामने अपलक-स्थिर खड़ी वह बात
बूढ़ी हो चुकी है,
मेरा जान पहिचाना शहर
उदास क्षणों में भी जगमगा रहा है।
तीक्ष्ण हो चुकी दृष्टि
हर मुहल्ले को झांक,
उस पते को ढूंढती है
जो मिटा नहीं है।
हम निकलकर आ गये
बाँहों को छोड़,
मुस्कानों को तोड़
हिमालयी हवा को पोछ
स्मृतियों के मोड़
पर शहर है कि थपथपाने को खड़ा है।
*** महेश रौतेला