"चश्म-ए-तर"
तेरी सोहबत के अशफाक़ से संवर जाउंगी मैं,
कसम से और भी ज्यादा निखर जाउंगी मैं।
कुछ ऐसे घुल जाउंगी तुझमें खुशबु बनकर,
फिर धीरे-धीरे तेरे दिल में उतर जाउंगी मैं।
बख़्त होगा अगर मिली पनाह तेरी आगोश में,
तेरे दिल से निकलकर किधर जाउंगी मैं।
जो छोड़ा हाथ तुमने तो बिखर जाउंगी मैं,
तुम्हारी क़सम फिर जीते-जी मर जाउंगी मैं।
ये हवा, चाँद, तारे सब गवाह है "कीर्ति" की वफ़ा के,
फिर भी ठुकराया तो चश्म-ए-तर जाउंगी मैं।
Kirti Kashyap"एक शायरा ✍️
सोहबत = मित्रता, दोस्ती, साथ
अशफ़ाक़ = नर्मी और प्रेम का व्यहार, एहसान
बख़्त = किस्मत, सौभाग्य
आगोश = आलिंगन
चश्म-ए-तर = आँसुओ से भरी आँखें