"झील के उस पार"
रात का सन्नाटा, ठंडी हवा और झील के किनारे खड़ी एक औरत — यही से शुरू होती है झील के उस पार की कहानी।
कबीर, जेरेफ, जारिन और सैरिन — चार ऐसे किरदार, जिनकी ज़िंदगी आपस में इस तरह उलझती है कि सच और झूठ की रेखा धुंधली पड़ जाती है।
कबीर, एक गम्भीर और रहस्यमयी इंसान, जिसकी आँखों में दर्द भी है और राज़ भी।
जेरेफ, उसका बचपन का दोस्त, लेकिन अब दोनों के बीच कुछ ऐसा है जो कहे बिना सब कुछ कह देता है — एक अधूरी सच्चाई, एक छिपा हुआ गुनाह।
जारिन, वह औरत जो हर शब्द में चुप्पी का ज़हर रखती है; जिसकी मौजूदगी ही कहानी का सबसे बड़ा सवाल बन जाती है।
और सैरिन… जो झील की उस पार खड़ी होकर किसी के लौट आने का इंतज़ार कर रही है — या शायद किसी के सच के खुल जाने का।
हर किरदार अपने अतीत के बोझ से दबा है।
हर मुस्कान के पीछे एक टूटा हुआ रिश्ता छिपा है।
और हर खामोशी के नीचे कोई चीख दबाई गई है।
कहानी धीरे-धीरे एक ऐसे मोड़ पर पहुँचती है जहाँ वफ़ादारी और धोखे के बीच की दीवार गिर जाती है।
झील की सतह पर उठती हर लहर जैसे किसी पुरानी याद को उघाड़ देती है —
कबीर का अपराध, जेरेफ की वफ़ादारी, जारिन की साज़िश और सैरिन का बदला — सब एक-दूसरे में घुलते जाते हैं।
लेकिन जब सच सामने आता है, तो कोई भी वही नहीं रहता जो पहले था।
झील की वो ठंडी हवा गवाही देती है —
कि कुछ रिश्ते सिर्फ़ इस पार नहीं, उस पार तक पीछा करते हैं…
और कुछ राज़ कभी पूरी तरह डूबते नहीं — वो सतह पर लौट आते हैं, ठीक उसी तरह जैसे झील का पानी हर सुबह फिर से चमक उठता है।
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Genre: रहस्य, प्रेम, अपराध, मनोवैज्ञानिक ड्रामा
Mood: भावनात्मक, सस्पेंस से भरा, और अंत में एक गहरी बेचैनी छोड़ देने वाला।
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